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  • Sansadnama | संसदनामा | Rishi Kumar Singh

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    Fahad Hussain

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  • Ankit Dubey

    Ankit Dubey

  • राष्ट्रवाद बनाम देशभक्तिराष्ट्रवाद बनाम देशभक्ति

    राष्ट्रवाद बनाम देशभक्ति

    पिछले पांच सात सालों में राष्ट्रवाद भारत में सबसे केंद्रीय विचार के रूप में उभरा है।अकादमिक विमर्शों से इतर चौक चौराहे और नुक्कड़ की बहसों में भी लोग अपनी समझ के अनुसार राष्ट्रवाद को परिभाषित करते मिल जाएंगे।राष्ट्रवाद भारत के लिए कोई नया विचार नहीं है।आजादी के लड़ाई में भी राष्ट्रवाद की अहम भूमिका रही है। ऐसे में राष्ट्रवाद और भारतीय राज्य के साथ इसके संबंध को समझना बहुत जरूरी हो जाता है।

    ANAND KUMAR
    ANAND KUMAR
  • अब खैर नहीं हनुमान की; पॉलिटिक्स में एंट्री ली है तो कुदृष्टि पड़नी ही है ! अब खैर नहीं हनुमान की; पॉलिटिक्स में एंट्री ली है तो कुदृष्टि पड़नी ही है ! 

    अब खैर नहीं हनुमान की; पॉलिटिक्स में एंट्री ली है तो कुदृष्टि पड़नी ही है ! 

    अचानक हनुमान ख़ास हो गए !  जिस नेता को देखो वो हनुमान को लपक रहा है ! अजब गजब सी स्थिति है ; आलम कुछ ऐसा है कि बजरंग बली को कहना पड़ रहा है - छोड़ते भी नहीं मेरा हाथ और थामते भी नहीं ; ये कैसी मोहब्बत है उनकी, गैर भी नहीं कहते हमें और अपना मानते भी नहीं ! 

    Prakash Jain
    Prakash Jain
  • रूस-यूक्रेन युद्ध की मार से लड़खड़ाती वैश्विक अर्थव्यवस्थारूस-यूक्रेन युद्ध की मार से लड़खड़ाती वैश्विक अर्थव्यवस्था

    रूस-यूक्रेन युद्ध की मार से लड़खड़ाती वैश्विक अर्थव्यवस्था

    रूस-यूक्रेन युद्ध का असर वैश्विक अर्थव्यवस्था दिखने लगा है. पिछले दो सालों से कोरोना महामारी की मार से पस्त वैश्विक अर्थव्यवस्था में हाल के महीनों में मुद्रास्फीति में उछाल जैसी गंभीर समस्याओं के बावजूद सुधार के संकेत दिख रहे थे लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण उसके एक बार फिर पटरी से उतरने का खतरा बढ़ गया है.

    आनंद प्रधान
    आनंद प्रधान
  • अभिषेक बच्चन स्टारर "दसवीं" ने एंटरटेनर बनने की कोशिश में एजुकेशनल वैल्यू का मजाक बनाकर छोड़ दिया !अभिषेक बच्चन स्टारर "दसवीं" ने एंटरटेनर बनने की कोशिश में एजुकेशनल वैल्यू का मजाक बनाकर छोड़ दिया !

    अभिषेक बच्चन स्टारर "दसवीं" ने एंटरटेनर बनने की कोशिश में एजुकेशनल वैल्यू का मजाक बनाकर छोड़ दिया !

    सिनेमा के दृष्टिकोण से 'दसवीं' की बात करें तो विधा के विभिन्न विषयों में से कास्टिंग ज़रूर डिस्टिंक्शन लाती है जबकि अन्य विधाएँ ख़ासकर कथानक फिसड्डी ही साबित हुए हैं; नतीजन फ़िल्म “दसवीं” फेल कर दी गई है !  और तो और , लगता है परीक्षक गण ( व्यूअर्स) ग्रेस मार्क्स देने से भी हिचक रहे हैं ! 

    Prakash Jain
    Prakash Jain
  • क्या पुरानी पेंशन व्यवस्था की वापसी की जमीन तैयार हो गई है? क्या पुरानी पेंशन व्यवस्था की वापसी की जमीन तैयार हो गई है?

    क्या पुरानी पेंशन व्यवस्था की वापसी की जमीन तैयार हो गई है?

    सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन व्यवस्था का जिन्न फिर जिन्दा हो गया है. राजस्थान और फिर छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकारों ने सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन व्यवस्था को बहाल करने की मांग को स्वीकार करके इस मुद्दे को फिर गर्म कर दिया है. अब इसे अनदेखा करना संभव नहीं रह गया है.

    आनंद प्रधान
    आनंद प्रधान
  • रूस और यूक्रेन में समझौते की कितनी है गुंजाइश?रूस और यूक्रेन में समझौते की कितनी है गुंजाइश?

    रूस और यूक्रेन में समझौते की कितनी है गुंजाइश?

    रूस-यूक्रेन युद्ध जितना लम्बा खींच रहा है, मानवीय तबाही उतनी ही ज्यादा बढ़ रही है और उसके हाथ से निकलने के खतरे उतने ही बढ़ते जा रहे हैं . अमेरिका , रूस और यूक्रेन तीनों इस युद्ध में दाँव ऊँचे करते जा रहे हैं जिसके कारण समाधान का स्पेस लगातार कम और मुश्किल होता जा रहा है.

    आनंद प्रधान
    आनंद प्रधान
  • हैप्पी समर ऑफ़ '२२हैप्पी समर ऑफ़ '२२

    हैप्पी समर ऑफ़ '२२

    इस बार गर्मी बहुत जल्दी आ गई! होली पर जाती ठण्ड की विदाई भी महसूस नहीं हुई! पानी से भी डर नहीं लगा! अच्छा ही हुआ घरवालों ने छत पर और मुझ पर दो बाल्टी पानी डाल दिया! अभी तो गरम कपड़े, मम्मी के बनाए स्वैटर, बिटिया की ऊनी जुराबें - सब बाहर वाली अलमारी में ही रखे हैं! अभी तो उन्हें धो कर, धूप में सुखा कर, फिनाइल के साथ गठरी में बांधने का मौका भी नहीं मिला! जयपुर की गर्मी तो बेहाल करने वाली सी है! वैसे यह हम हर साल बोलते हैं, पर इस बार आंकड़े भी बोल रहे हैं!

    Ritika
    Ritika
  • काठियावाड़ की ‘गंगा’ से ‘गंगुबाई काठियावाड़ी’ तक का सफर!काठियावाड़ की ‘गंगा’ से ‘गंगुबाई काठियावाड़ी’ तक का सफर!

    काठियावाड़ की ‘गंगा’ से ‘गंगुबाई काठियावाड़ी’ तक का सफर!

    सब समाज अच्छी, सुशील और संस्कारी महिला की उम्मीद करता हैं परंतु ये शर्ते पुरुष के मामले में कहीं विलुप्त सी हो जाती है।

    ashok
    ashok
  • नेटफ्लिक्स वेब सीरीज "द फेम गेम" : स्क्विड फाइंडिंग ऑफ़ ए ग्लैमरस हीरोइन !नेटफ्लिक्स वेब सीरीज "द फेम गेम" : स्क्विड फाइंडिंग ऑफ़ ए ग्लैमरस हीरोइन !

    नेटफ्लिक्स वेब सीरीज "द फेम गेम" : स्क्विड फाइंडिंग ऑफ़ ए ग्लैमरस हीरोइन !

    किसी का कमाल का शेर हैं -कमाल कुछ भी नहीं और शोहरतों की तलब, संभाल के तीर चलाना निशान ऊँचा है ! शोहरत बनाये रखने के लिए ग्लैमर की दुनिया में रचे गए खेलों का तमाशा है वेब सीरीज द फेम गेम लेकिन करण जौहर कैंप ने शोहरतों की तलब के लिए जो तीर चलाए हैं वे निशाना चूक गए हैं।  

    Prakash Jain
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  • “इंकलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है”“इंकलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है”

    “इंकलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है”

    जब आप किसी व्यक्ति के वास्तविक विचारों से परिचित नहीं होते हैं तो अनजाने में ही गलती कर बैठते हैं। ऐसी ही गलती मेरे एक मित्र ने भगत सिंह की तुलना बुरहान वानी से करके की।(जैसे भगत अपनी मातृ भूमि के लिए लड़ रहा था वैसे ही बुरहान भी अपने civic nationalism ke liye) भगत सिंह के हाथ में बंदूक और मूंछ में ताव देने वाली फोटो की जगह विचारों को पढ़ लिया होता तो यह गलती नहीं करते।

    ashok
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  • मराठी फिल्म "गोदाकाठ" आर्ट एंड कल्चर केटेगरी का सिनेमा है लेकिन विषय रोचक और ज्वलंत है !मराठी फिल्म "गोदाकाठ" आर्ट एंड कल्चर केटेगरी का सिनेमा है लेकिन विषय रोचक और ज्वलंत है !

    मराठी फिल्म "गोदाकाठ" आर्ट एंड कल्चर केटेगरी का सिनेमा है लेकिन विषय रोचक और ज्वलंत है !

    वाकई मराठी सिनेमा की समझ को दाद देना बनता है जिसकी छोटी सी दुनिया में कोई फ़िल्मकार लगभग साल भर पहले वह परिकल्पित कर चुका होता है, जो सुदूर अमेरिका में कहीं साल भर बाद सच होता है। 

    Prakash Jain
    Prakash Jain
  • “काँटों को मत निकाल चमन से ओ बाग़बाँ; ये भी गुलों के साथ पले हैं बहार में”“काँटों को मत निकाल चमन से ओ बाग़बाँ; ये भी गुलों के साथ पले हैं बहार में”

    “काँटों को मत निकाल चमन से ओ बाग़बाँ; ये भी गुलों के साथ पले हैं बहार में”

    एक मायने में हम सब विदेशी हैं। क्योंकि हम सभी के पूर्वज संभवतः अफ्रीका से आए थे। अगर अंग्रेजों की ‘बांटो और राज करो’ की नीति का अनुसरण करते हुए, आज भी हम मुगलों को विदेश साबित करते रहेंगे तो हिंदुस्तान का कोई फायदा नहीं होगा।

    ashok
    ashok
  • सुनिए मुसाफिर! यह ‘गाइड’ आपके लिए।सुनिए मुसाफिर! यह ‘गाइड’ आपके लिए।

    सुनिए मुसाफिर! यह ‘गाइड’ आपके लिए।

    यह सिर्फ एक फिल्म नहीं है। यह एक दुनिया है। इस दुनिया को रचा गया है, ‘मालगुडी डेज’ वाले आर.के. नारायण के उपन्यास ‘गाइड’ के आधार पर। इसके मुख्य किरदारों में शामिल है मशहूर अदाकारा वहीदा रहमान और आनंद के देव–देव आनंद।

    ashok
    ashok
  • सड़कों के रास्ते विकास को गति देने का प्रयाससड़कों के रास्ते विकास को गति देने का प्रयास

    सड़कों के रास्ते विकास को गति देने का प्रयास

    वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2022 में सड़कों और राजमार्गों का जाल बिछाने पर खूब पूंजी लगाई है| बजट भाषण में सीतारमण ने कहा कि पीएम गतिशक्ति आर्थिक वृद्धि और सतत विकास की दिशा में एक परिवर्तनकारी पद्धति है। इस पद्धति का संचालन सात इंजनों- सड़क, रेलवे, एयरपोर्ट, बंदरगाह, सार्वजनिक परिवहन, जलमार्ग और लॉजिस्टिक अवसंरचना से होता है। और ये सातों इंजन एक साथ मिलकर अर्थव्‍यवस्‍था को आगे ले जाएंगे।

    Shakti Pratap Singh
    Shakti Pratap Singh
  • क्या 2047 तक आधे भारतीय शहर में रहेंगे ?क्या 2047 तक आधे भारतीय शहर में रहेंगे ?

    क्या 2047 तक आधे भारतीय शहर में रहेंगे ?

    साल 2022-23 का बजट काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा था। कोरोना महामारी के दो बड़े लहर झेलने तथा तीसरी लहर की आशंका के बीच सभी भारतीय की नजर इस बजट पर टिकी थी। लगातार लग रहे पाबंदियों और समय-समय पर महामारी के घटने बढ़ने के कारण शहरी और ग्रामीण इलाके के बीच एक खाई का निर्माण हो रहा था। भारत एक ग्राम प्रधान राष्ट्र है। यहां की लगभग 70 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती हैं। लेकिन ग्रामीण इलाके का एक बड़ा हिस्सा अपने रोजी रोटी हेतु शहर में प्रवासी के रूप में रहते है। वर्षो से इस विषय पर मंथन हो रहा है कि एक प्रवासी के रूप में रोजी रोटी कमाने हेतु शहर और फिर वापस अपने घर लौटने वाले लोगो के लिए स्थाई हल निकाला जाए।बजट 2022-23 को सदन में पेश करते हुए निर्मला सीतारमन ने अपने अभिभाषण में कहा कि भारत जब अपने आजादी का शताब्दी मना रहा होगा तब देश की आधी जनसंख्या शहर में निवास कर रही होगी। साल 2047 में भारत के आजादी की सौ साल पूरे हो जाएंगे। वर्तमान समय में देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी गांव में निवास कर रही है। अब प्रश्न यह आता है कि क्या अगले 25 वर्ष में भारत की लगभग 20 प्रतिशत आबादी शहरी क्षेत्रों में निवास करने लगेगी ?सदन में अपने भाषण में वित्त मंत्री ने कहा कि इस स्थिति को तैयार करने के लिए एक सुव्यवस्थित शहरी विकास की जरूरत है। इससे लिए हमें एक मेगा सिटीज के पोषण की जरूरत है तथा आसपास के क्षेत्रों को आर्थिक विकास के वर्तमान केंद्रो के रूप में विकसित करने की जरूरत हैं। इसके साथ साथ उन्होंने शहरी क्षेत्र की नीतियों, क्षमता, निर्माण, नियोजन, कार्यान्वन, प्रशासन के बारे में सिफारिशें करने के लिए प्रतिष्ठित शहरी नियोजकों, शहरी अर्थशास्त्रियों और संस्थानों की एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया जाएगा।इसके साथ साथ राज्यों का जिक्र करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि शहरी क्षमता निर्माण के लिए राज्यो को सहायता दी जाएगी। शहरी नियोजन और डिजाइन में भारत विशिष्ट ज्ञान विकसित करने और इस क्षेत्रों में प्रमाणित प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए, विभन्न क्षेत्रों में 5 मौजूदा शैक्षिक संस्थाओं केंद्रो के रूप में अभिहित किया जाएगा। इस केंद्रो को प्रत्येक के लिए 250 करोड़ रुपए की निधि प्रदान की जाएगी। इसके अलावा, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद पाठ्यक्रम, गुणवत्ता सुधारने तथा अन्य संस्थाओं में शहरी नियोजन पाठ्यक्रमों की सुलभता के लिए अग्रणी भूमिका निभाएगी।लेकिन अब प्रश्न यह उठता है कि क्या वित्त मंत्री के द्वारा की गई घोषणा साल 2047 तक आधे भारतीय को शहरी क्षेत्रों में बसाने हेतु पर्याप्त है। क्योंकि अपने बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री ने ना कोई विशेष फंड को घोषणा की, और ना ही कोई सुव्यवस्थित नीति का ऐलान किया।

    Rishabh Rajput
    Rishabh Rajput
  • थोड़ा है थोड़े की जरूरत है...थोड़ा है थोड़े की जरूरत है...

    थोड़ा है थोड़े की जरूरत है...

    वित्त वर्ष 2022-2023 के बजट से यह साफ हो गया है कि आने वाले दिनों में विकास को चमत्कार के रूप में होते देख सकेंगे। आर्थिक सर्वेक्षण मे जीडीपी की वृद्धि दर को 9.2 प्रतिशत रखने का अनुमान है बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा की उनकी सरकार विकास और गरीबी की भलाई के लिए प्रतिबद्ध है।

    sharmadevesh
    sharmadevesh
  • वेब सीरीज रिव्यू : सकारात्मकता ही कोरोना से पॉज़ हुई जिंदगी के नए सफर को अनपॉज्ड रख सकती है ! वेब सीरीज रिव्यू : सकारात्मकता ही कोरोना से पॉज़ हुई जिंदगी के नए सफर को अनपॉज्ड रख सकती है ! 

    वेब सीरीज रिव्यू : सकारात्मकता ही कोरोना से पॉज़ हुई जिंदगी के नए सफर को अनपॉज्ड रख सकती है ! 

    पांच हिंदी शॉर्ट फिल्मों के इस संकलन की हर कहानी व्यूअर्स कोरोना के बीच आई परेशानियों का एहसास कराती है। लेकिन ख़ास बात है कि सभी कहानियों में सकारात्मकता भी है नए सफर पर निकलने की आकांक्षाओं के साथ ! 

    Prakash Jain
    Prakash Jain
  • आज के नेता! नेताजी के बताए रास्ते पर कब चलेंगे?आज के नेता! नेताजी के बताए रास्ते पर कब चलेंगे?

    आज के नेता! नेताजी के बताए रास्ते पर कब चलेंगे?

    बंगाल की जमीन ने आज़ादी के संघर्ष में ‘क्रांतिकारी राष्ट्रवादियों’ को पाला–पोसा था। उन्हीं में से एक कलकत्ता के भूतपूर्व मेयर, अपने देश, अपनी मातृभूमि की आज़ादी के लिए 6 जुलाई 1944 को रंगून के रेडियो से, एक लंगोट धारी फकीर को राष्ट्रपिता की उपाधि देते हुए। ब्रितानी हुकूमत से युद्ध हेतु आशीर्वाद और शुभकामनाएं मांगता है।

    ashok
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  • ‘मंटो’ अब भी हमे कुछ कह रहे हैं! ‘मंटो’ अब भी हमे कुछ कह रहे हैं!

    ‘मंटो’ अब भी हमे कुछ कह रहे हैं!

    सआदत हसन मंटो का जन्म पंजाब के लुधियाना में हुआ था। उन्होंने कई अफसाने (कहानियां) लिखें। भारत–पाकिस्तान विभाजन के समय आम लोगों के दर्द पर लिखें अफसाने काफ़ी प्रसिद्ध हुए थे।

    ashok
    ashok
  • कहानी वॉचडॉग और लैपडॉग की……कहानी वॉचडॉग और लैपडॉग की……

    कहानी वॉचडॉग और लैपडॉग की……

    कुत्तों की वफ़ादारी को लेकर महाभारत में युधिष्ठिर और उनके पालतू कुत्ते का प्रसंग काफी प्रसिद्ध है। जब युधिष्ठिर अपने सभी पांडव भाइयों और पालतू कुत्तों के साथ स्वर्ग को प्रस्थान करते हैं तो रास्ते में कई दुर्गम पड़ाव आते हैं। रास्ता जैसे-जैसे दुर्गम होता जाता है, उनके सभी भाई एक-एक कर उनका साथ छोड़ते जाते हैं। लेकिन जब वे स्वर्ग के द्वार पर पहुंचते हैं तो उनका कुत्ता अब भी उनके पीछे उनके साथ खड़ा होता है । उसकी आँखों में अब भी उतनी ही वफ़ादारी झलक रही होती है जितनी पहले, शायद पहले से भी ज्यादा। स्वर्ग का द्वारपाल कुत्ते को स्वर्ग के अंदर जाने की इजाज़त नहीं देता है। जिस कारण युधिष्ठिर द्वारपाल पर क्रोधित हो जाते हैं । युधिष्ठिर द्वारपाल से कहते हैं कि जिस दुर्गम रास्ते पर मेरे भाइयों ने मेरा साथ छोड़ दिया जिनसे मैंने सबसे अधिक प्रेम किया उस दुर्गम रास्ते पर भी मेरे इस कुत्ते ने मेरा साथ नहीं छोड़ा । यदि मेरा कुत्ता स्वर्ग में प्रवेश के योग्य नहीं है तो मुझे भी कोई अधिकार नहीं है कि मैं स्वर्ग में वास करुं। ये तो थी युधिष्ठिर और उनके पालतू कुत्ते की एक दूसरे के प्रति वफ़ादारी की कहानी। लेकिन ये कोई द्वापर युग नहीं है और यहाँ कोई युधिष्ठिर भी नहीं है। आखिर हों भी क्यों, फायदा ही क्या है युधिष्ठिर होने का , नुकसान ही है ! जब युधिष्ठिर को द्वापर में इतने कष्ट थे, ये तो कलयुग है। यहाँ तो सभी दुर्योधन बनने पर गर्व महसूस कर रहे क्योंकि इसी में फायदा है। क्योंकि अब विजय सत्य की नहीं, सत्य के नाम पर असत्य की होती है। जिसकी जीत होगी फायदा भी उसी के साथ हो लेने में होगा ।

    mohitt

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